गुरुग्राम में हैवस का यूएलडी कंटेनर असेंबली और एमआरओ सपोर्ट सेंटर  खोला

गुरुग्राम।  हैवस एरोटेक इंडिया भारत की सबसे तेजी से आगे बढ़ती हुई कंपोनेंट असेंबली करने वाली और एमआरओ सर्विसेज देने वाली कंपनी है। कंपनी ने भारत में पहला यूएलडी केंटेनर्स असेंबली और एमआरओ सपोर्ट सेंटर गुरुग्राम में खोला है। यह प्लांट 25 हजार वर्गफीट के क्षेत्र में बनाया गया है। राष्ट्रीय राजमार्ग से सटे गुरुग्राम के सेक्टर 76 में यह प्लांट 20 हजार वर्गफीट के कवर्ड और 5000 वर्गफीट के ओपन एरिया में बनाया गया है। गुरुग्राम में भारत के पहले यूएलडी कंटेनर्स असेंबली और एमआरओ सेंटर का उद्घाटन इंडिगो में कार्गो विभाग के चीफ कमर्शल अफसर महेश मलिक और साफरान-इंडिया के सीईओ पियरे डिकेली ने किया। इस अवसर पर हैवस यूएस एयरोटेक इंडिया के एमडी अंशुल भार्गव भी मौजूद थे। इस महत्वपूर्ण कार्यक्रम में डीसीजीए के गणमान्य प्रतिनिधि, इंडिया का दूसरी एयरलाइंस और हवा में उड़ान भरने के शौकीन लोग इस मौके पर उपस्थित है। यूनिट लोड डिवाइस एक कंटेनर है, जो मालवाहक विमान में सामान लोड करने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

रिपोर्ट के अनुसार महामारी के दौरान भारत की सबसे बड़ी एयरलाइंस, इंडिगो एयर कार्गो में जल्दी ही पहला मालवाहक विमान लॉन्च करेगी। इस नए वेंचर के लिए इंडिगो ने यूएलडी हासिल करने के लिए साफरान से मदद हासिल की। साफरन ने हैवस एरोटेक को भारत में सपोर्ट सेंटर नियुक्त किया है। यह भारत का पहला यूएलडी कंटेनर्स असेंबली और एमआरओ सेंटर है।

इस अवसर पर हैवस एरोटेक इडिया के एमडी अंशुल भार्गव ने कहा, भारत में उड्डयन क्षेत्र में विकास की व्यापक संभावनाएं मौजूद है। भारतीय एविएशन सेक्टर एमआरओ बिजनेस में महत्वपूर्ण उड़ान भरने के लिए तैयार है। इसका एक कारण घरेलू मांग में बढ़ोतरी के साथ विमान का आकार बढ़ना है। इससे संपूर्ण रूप से एमआरओ एक्टिवटी को लाभ होगा। भारत के विकास रफ्तार का लाभ लेने के लिए एमआरओ सेटअप में बदलाव जरूरी है।

हैवस एरोटेक के एमडी अंशुल भार्गव ने कहा, विदेशी कंपनियों की तुलना में भारतीय एमआरओ इंडस्ट्री अपेक्षाकृत कम विकसित हैं। भारत में एमआरओ अपने सीमित इंफ्रास्ट्रक्टर की वजह से केवल बेसिक दर्जे की सर्विस प्रदान करते हैं। अधिकांश विदेशी एमआरओ कई प्रमुख एयरलाइंस, जैसे एयरफ्रांस, लुफ्थांसा, टर्किंग टेक्नीक, की सहायक कंपनियां है। एमआरओ क्षमता विकसित करने के बिजनेस के अवसरों पर ध्यान केंद्रित करने के लिए उन्हें ओईएम से भरपूर सहयोग मिलता है, जबकि भारतीय एमआरओ को यह सुविधाएं नहीं मिल पाती। यह सबसे बड़ी हानि है।

भारत में एयरलाइंस प्रमुख रूप से विदेशी एमआरओ पर निर्भर है। इसमें कंपोनेंट से संबंधित सोल्यूशंस भी शामिल है। इसलिए यह ज्यादा प्रासंभिक होगा कि इन सेवाओं को प्रदान करने और देने की क्षमता भारत में ही विकसित की जाए और विदेशी एमआरओ पर निर्भरता कम हो। कुल मिलाकर इससे न केवल समय की बचत होगी, बल्कि इससे एयरलाइंस को सस्ती और प्रभावी सेवाएं भी इस तरह से मिलेंगी।

कंपोनेंट को विदेशी एमआरओ तक भेजना और वहां से वापस नहीं लाना पड़ेगा। इससे मालवाहक सामान के परिवहन, कस्टम और टैक्स में बढ़ोतरी होगी।

विदेशी मुद्रा खर्च के बोझ में कमी आएगी

इस क्षेत्र पर लगाए जाने वाले टैक्सों में स्थिरता लाने की जरूरत है, जिससे भारतीय एमआरओ ऑपरेटर्स की लागत कम हो सके। एमआरओ सर्विसेज पर एयरलाइन ऑपरेटर्स की ओर से जीएसटी की दरों में कमी एक स्वागत योग्य कदम है, लेकिन इसके साथ ही मालवाहक विमान में सामान ढोने की जीएसटी दरों में कोई कटौती नहीं की गई है। इससे कार्यशील पूंजी ब्लॉक हो रही है और इसकी जिम्मेदारी करों के मौजूदा ढांचे पर है। हालांकि इनपुट्स पर अदा की हुई जीएसटी का कुछ समय बाद भारतीय एमआरओ आपरेटर रिफंड ले सकते है, लेकिन इससे नकदी के प्रवाह में रुकावट आती है और एमआरओ इंडस्ट्री की संचालन लागत में बढ़ोतरी होती है।

एक अन्य मुद्दा बेहद महत्वपूर्ण है, जिस पर तुरंत स्पष्टीकरण की जरूरत है, वह यह है कि एमआरओ ऑपरेटर की ओर से सामान की सप्लाई पर दी जाने वाली रिपेयर सर्विसेज पर लगाई जाने वाली जीएसटी की दरों जल्द से जल्द तय हों।

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