सुनहरी बाग मस्जिद मामले में कोर्ट पहुंची जमाअत

-मस्जिद को ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दर्जा प्राप्त: खान

नई दिल्ली। सुनहरी बाग मस्जिद मामले में जमाअत-ए–इस्लामी हिंद ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। गुरुवार को जमाअत-ए-इस्लामी हिन्द के उपाध्यक्ष मलिक मोतसिम खान ने प्रस्तावित विध्वंस का विरोध करते हुए कहा कि हम एनडीएमसी के मुख्य वास्तुकार द्वारा दिए गए मनमाने सार्वजनिक नोटिस से बेहद चिंतित हैं, जिसमें कहा गया है कि सुनहरी बाग चौराहे के आसपास बेहतर यातायात प्रबंधन के लिए दिल्ली ट्रैफिक पुलिस से आधिकारिक अनुरोध प्राप्त करने के बाद एनडीएमसी सुनहरी मस्जिद को हटाने पर विचार कर रही है।  एनडीएमसी की कार्रवाई पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा कि इस मस्जिद को ऐतिहासिक और सांस्कृतिक दर्जा प्राप्त है और यह दिल्ली के 141 ऐतिहासिक स्थानों की सूची में शामिल है और इसे धार्मिक महत्व का दर्जा भी प्राप्त है। जामा मस्जिद के तत्कालीन इमाम ने भारत के मुसलमानों की ओर से तत्कालीन प्रधान मंत्री नेहरू के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए जिसमें मस्जिद की सुरक्षा की गारंटी दी गई थी। इसके अलावा मस्जिद की सुरक्षा को लेकर कुछ अन्य समझौते भी हुए हैं। साथ ही इस मस्जिद के संबंध में 18 दिसंबर 2023 को दिल्ली हाई कोर्ट का एक फैसला आया था, जिसमें आश्वासन दिया गया था कि इस मस्जिद को कोई नुकसान नहीं होगा। न्यायालय के आश्वासन के बावजूद इसको तोडऩे के लिए जनता की राय लेना असंवैधानिक है। फिर इस मस्जिद का मामला अभी भी कोर्ट में विचाराधीन है। इसलिए अंतिम फैसला आने तक एनडीएमसी को चाहिए कि मस्जिद से सम्बंधित अपनी बातें कोर्ट में रखे, न कि जनता की राय लेनी चाहिए। मलिक मोतसिम खान ने कहा कि मस्जिद से उत्पन्न यातायात समस्याओं पर जनता की राय लेने के बजाय, एनडीएमसी को विशेषज्ञ की राय लेनी चाहिए और मस्जिद के चारों ओर एक गोल चक्कर, एक भूमिगत सुरंग या एक ओवरहेड फ्लाईओवर बनाने जैसे वैकल्पिक समाधानों की व्यवहार्यता की जांच करनी चाहिए। राजधानी में आए दिन किसी न किसी धार्मिक, सांस्कृतिक, शैक्षणिक, राजनीतिक और व्यापारिक आयोजनों के कारण ट्रैफिक जाम की स्थिति बनी रहती है। क्या इसका मतलब यह है कि हम इन सभी गतिविधियों को समाप्त कर दें? दुनिया का कोई भी देश वाहन यातायात में अनुत्तरदायी बढ़ोतरी के खातिर  रास्ता बनाने के लिए लिए अपनी विरासत को नहीं मिटाता। जमाअत-ए-इस्लामी हिंद का मानना है कि सुनहरी मस्जिद का स्वामित्व दिल्ली वक्फ बोर्ड के पास है और इसकी जमीन पर एनडीएमसी का दावा जो अदालत में लंबित है, गलत है। जमाअत भारत सरकार को याद दिलाना चाहेगी कि स्वतंत्रता सेनानी और संसद सदस्य मौलाना हसरत मोहानी संसद सत्र में भाग लेने के दौरान सुनहरी मस्जिद में रुका करते थे। मीडिया रिपोर्टों से पता चलता है कि एनडीएमसी के सार्वजनिक नोटिस के बाद जनता से प्रतिक्रिया मांगी गई है, अधिकांश लोगों ने मस्जिद के विध्वंस का विरोध किया है। इतिहास को चुनिंदा तरीके से मिटाना प्रतिशोधपूर्ण और निराशाजनक दोनों है और अगर हमारी सरकार न्याय और निष्पक्षता में विश्वास करती है तो उसे इससे बचना चाहिए।
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